Saturday, 28 January 2012

परिंदों को क्या पता

बदनीयतों की चाल परिंदों को क्या पता 
फैला है कहाँ जाल, परिंदों को क्या पता 

लोगों की कुछ लज़ीज़ निवालों के वास्ते 
उसकी खिचेंगी खाल, परिंदों को क्या पता 

उड़कर हजारों मील इसी झील किनारे
क्यूं आता है हर साल,परिंदों को क्या पता 

एक - एक करके सूखते ही जा रहे हैं क्यूं 
सब झील , सब टीले, परिंदों को क्या पता 
- लक्ष्मी शंकर वाजपेयी , दिल्ली 

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